श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 5: स्वामिभक्त एवं दयालु पुरुषकी श्रेष्ठता बतानेके लिये इन्द्र और तोतेके संवादका उल्लेख  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  13.5.10 
ततश्चिन्तामुपगत: शक्र: कथमयं द्विज:।
तिर्यग्योनावसम्भाव्यमानृशंस्यमवस्थित:॥ १०॥
 
 
अनुवाद
इन्द्र को आश्चर्य होने लगा कि इस पक्षी ने ऐसी असाधारण करुणा कैसे प्राप्त कर ली है, जो पक्षी रूप में तो व्यावहारिक रूप से असम्भव है।॥10॥
 
Indra began to wonder how this bird has achieved such extraordinary compassion, which is practically impossible in the form of a bird.॥ 10॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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