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श्लोक 13.4.40-41  |
व्यत्यासस्तु कृतो यस्मात् त्वया मात्रा च ते शुभे।
तस्मात् सा ब्राह्मणं श्रेष्ठं माता ते जनयिष्यति॥ ४०॥
क्षत्रियं तूग्रकर्माणं त्वं भद्रे जनयिष्यसि।
न हि ते तत् कृतं साधु मातृस्नेहेन भाविनि॥ ४१॥ |
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अनुवाद |
‘शुभे! तुमने और तुम्हारी माता ने स्थान-परिवर्तन कर लिया है, इसलिए तुम्हारी माता एक श्रेष्ठ ब्राह्मण पुत्र को जन्म देगी और भद्रे! तुम एक ऐसे क्षत्रिय की माता बनोगी जो घोर कर्म करेगा। भाविनी! तुमने यह शुभ कर्म अपनी माता के स्नेह के कारण नहीं किया।’॥40-41॥ |
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‘Shubhe! You and your mother have exchanged places, therefore your mother will give birth to a superior brahmin's son and Bhadre! You will be the mother of a kshatriya who will commit terrible deeds. Bhavini! You did not do this good deed because of the affection of your mother.'॥ 40-41॥ |
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