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अध्याय 4: आजमीढके वंशका वर्णन तथा विश्वामित्रके जन्मकी कथा और उनके पुत्रोंके नाम
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श्लोक 15
श्लोक
13.4.15
तथेति वरुणो देव आदित्यो भृगुसत्तमम्।
उवाच यत्र ते छन्दस्तत्रोत्थास्यन्ति वाजिन:॥ १५॥
अनुवाद
तब आदित्यनन्दन वरुणदेव ने उन महामुनि भृगु से कहा - बहुत अच्छा, जहाँ आप चाहेंगे, वहाँ से ऐसे घोड़े प्रकट हो जाएँगे ॥15॥
Then Aditinandan Varunadev said to that great sage of Bhrigu - Very good, wherever you wish, such horses will appear from there. ॥15॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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