श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 4: आजमीढके वंशका वर्णन तथा विश्वामित्रके जन्मकी कथा और उनके पुत्रोंके नाम  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  13.4.15 
तथेति वरुणो देव आदित्यो भृगुसत्तमम्।
उवाच यत्र ते छन्दस्तत्रोत्थास्यन्ति वाजिन:॥ १५॥
 
 
अनुवाद
तब आदित्यनन्दन वरुणदेव ने उन महामुनि भृगु से कहा - बहुत अच्छा, जहाँ आप चाहेंगे, वहाँ से ऐसे घोड़े प्रकट हो जाएँगे ॥15॥
 
Then Aditinandan Varunadev said to that great sage of Bhrigu - Very good, wherever you wish, such horses will appear from there. ॥15॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.