श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 34: राजर्षि वृषदर्भ (या उशीनर)-के द्वारा शरणागत कपोतकी रक्षा तथा उस पुण्यके प्रभावसे अक्षयलोककी प्राप्ति  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  13.34.6 
भयं ते सुमहत् कस्मात् कुत्र किं वा कृतं त्वया।
येन त्वमिह सम्प्राप्तो विसंज्ञो भ्रान्तचेतन:॥ ६॥
 
 
अनुवाद
बताओ, तुम्हें यह महान भय कहाँ से और किससे प्राप्त हुआ? तुमने ऐसा कौन-सा अपराध किया है? जिसके कारण तुम्हारी चेतना भ्रमित हो रही है और तुम यहाँ मूर्च्छित होकर आए हो॥6॥
 
‘Tell me, where and from whom did you get this great fear? What crime have you committed? Due to which your consciousness is getting confused and you have come here in a trance.॥ 6॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.