श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 34: राजर्षि वृषदर्भ (या उशीनर)-के द्वारा शरणागत कपोतकी रक्षा तथा उस पुण्यके प्रभावसे अक्षयलोककी प्राप्ति  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  13.34.5 
स तं दृष्ट्वा विशुद्धात्मा त्रासादङ्कमुपागतम्।
आश्वास्याश्वसिहीत्याह न तेऽस्ति भयमण्डज॥ ५॥
 
 
अनुवाद
उस कबूतर को भयभीत होकर अपनी गोद में आते देख, शुद्ध हृदय वाले राजा उशीनर ने उस पक्षी को आश्वस्त करते हुए कहा - 'हे अण्डज! शान्त रहो। तुम्हें यहाँ किसी बात का भय नहीं है॥5॥
 
Seeing that pigeon coming in his lap in fear, the king Ushinar, who had a pure heart, assured the bird and said - 'O egg-born! Be calm. You have nothing to fear here.॥ 5॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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