श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 34: राजर्षि वृषदर्भ (या उशीनर)-के द्वारा शरणागत कपोतकी रक्षा तथा उस पुण्यके प्रभावसे अक्षयलोककी प्राप्ति  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  13.34.3 
भीष्म उवाच
इदं शृणु महाप्राज्ञ धर्मपुत्र महायश:।
इतिहासं पुरावृत्तं शरणार्थं महाफलम्॥ ३॥
 
 
अनुवाद
भीष्मजी बोले - महाबुद्धिमान, धर्मपुत्र युधिष्ठिर! शरणागत की रक्षा करने से जो महान फल मिलता है, उसके विषय में यह प्राचीन कथा सुनो॥3॥
 
Bhishmaji said – Great wise, great son of religion Yudhishthir! Listen to this ancient story about the great reward that comes from protecting the surrendered. 3॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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