श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 34: राजर्षि वृषदर्भ (या उशीनर)-के द्वारा शरणागत कपोतकी रक्षा तथा उस पुण्यके प्रभावसे अक्षयलोककी प्राप्ति  »  श्लोक 25-26h
 
 
श्लोक  13.34.25-26h 
तासां रुदितशब्देन मन्त्रिभृत्यजनस्य च॥ २५॥
बभूव सुमहान् नादो मेघगम्भीरनि:स्वन:।
 
 
अनुवाद
उनके रोने तथा मन्त्रियों और सेवकों के कोलाहल से वहाँ मेघ की गर्जना के समान बड़ा भारी कोलाहल मच गया।
 
Due to their weeping and the uproar of the ministers and servants, a huge uproar was created there, like the loud roar of a cloud. 25 1/2.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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