श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 34: राजर्षि वृषदर्भ (या उशीनर)-के द्वारा शरणागत कपोतकी रक्षा तथा उस पुण्यके प्रभावसे अक्षयलोककी प्राप्ति  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  13.34.16 
प्रभुत्वं हि पराक्रम्य सम्यक् पक्षहरेषु ते।
यदि त्वमिह धर्मार्थी मामपि द्रष्टुमर्हसि॥ १६॥
 
 
अनुवाद
जो शत्रुओं की श्रेणी में हैं और आपकी आज्ञा का उल्लंघन करते हैं, उनके विरुद्ध वीरता दिखाकर अपनी श्रेष्ठता प्रकट करना आपके लिए उचित हो सकता है। यदि आप धर्म के लिए यहाँ कबूतर की रक्षा कर रहे हैं, तो मुझ भूखे पक्षी की ओर भी आपको देखना चाहिए।॥16॥
 
It may be appropriate for you to show your supremacy by showing valour against those who are in the category of enemies who disobey you. If you are protecting the pigeon here for the sake of Dharma, then you should also look at me, a hungry bird.॥16॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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