श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 34: राजर्षि वृषदर्भ (या उशीनर)-के द्वारा शरणागत कपोतकी रक्षा तथा उस पुण्यके प्रभावसे अक्षयलोककी प्राप्ति  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  13.34.12 
तृष्णा मे बाधतेऽत्युग्रा क्षुधा निर्दहतीव माम्।
मुञ्चैनं न हि शक्ष्यामि राजन् मन्दयितुं क्षुधाम्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
मैं बड़ी प्यास से तड़प रहा हूँ। भूख की ज्वाला मुझे जला रही है। हे राजन! कृपया उसे छोड़ दीजिए। मैं अपनी भूख नहीं दबा पाऊँगा॥ 12॥
 
I am tormented by a great thirst. The flames of hunger burn me up. O King! Please leave him. I will not be able to suppress my hunger.॥ 12॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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