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श्लोक 13.34.12  |
तृष्णा मे बाधतेऽत्युग्रा क्षुधा निर्दहतीव माम्।
मुञ्चैनं न हि शक्ष्यामि राजन् मन्दयितुं क्षुधाम्॥ १२॥ |
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अनुवाद |
मैं बड़ी प्यास से तड़प रहा हूँ। भूख की ज्वाला मुझे जला रही है। हे राजन! कृपया उसे छोड़ दीजिए। मैं अपनी भूख नहीं दबा पाऊँगा॥ 12॥ |
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I am tormented by a great thirst. The flames of hunger burn me up. O King! Please leave him. I will not be able to suppress my hunger.॥ 12॥ |
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