श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 31: मतङ्गकी तपस्या और इन्द्रका उसे वरदान देना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  13.31.4 
शक्र उवाच
चण्डालयोनौ जातेन नावाप्यं वै कथंचन।
अन्यं कामं वृणीष्व त्वं मा वृथा तेऽस्त्वयं श्रम:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
इन्द्र ने कहा- मतंग! चाण्डाल के गर्भ से उत्पन्न मनुष्य किसी भी प्रकार ब्राह्मणत्व प्राप्त नहीं कर सकता; अतः तुम्हें कोई अन्य इच्छित वस्तु माँगनी चाहिए, जिससे तुम्हारा प्रयास व्यर्थ न जाए।
 
Indra said-Matang! A person born in the womb of a Chandala cannot attain Brahminhood in any way; therefore you should ask for some other desired thing so that your efforts do not go in vain.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.