श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 26: ब्रह्महत्याके समान पापोंका निरूपण » श्लोक 4 |
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| | श्लोक 13.26.4  | इति पृष्टो मया राजन् पराशरशरीरज:।
अब्रवीन्निपुणो धर्मे नि:संशयमनुत्तमम्॥ ४॥ | | | अनुवाद | राजन! मेरे ऐसा पूछने पर धर्मकुशल पराशरपुत्र व्यासजी ने यह परम उत्तम बात कही, जो संदेह से परे है -॥4॥ | | King! When I asked this, the Dharma-skilled Vyasa, son of Parashara, said this supremely good thing that is beyond any doubt -॥ 4॥ |
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