श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 26: ब्रह्महत्याके समान पापोंका निरूपण » श्लोक 3 |
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| | श्लोक 13.26.3  | चतुर्थस्त्वं वसिष्ठस्य तत्त्वमाख्याहि मे मुने।
अहिंसयित्वा केनेह ब्रह्महत्या विधीयते॥ ३॥ | | | अनुवाद | मैंने पूछा था, 'मुनि! आप वसिष्ठजी के चौथे वंशज हैं। कृपया मुझे ठीक-ठीक बताइए कि कौन-से कर्मों से ब्रह्महत्या का पाप लगता है, भले ही कोई ब्राह्मण को न मारे?'॥3॥ | | I had asked, 'Muni! You are the fourth generation descendant of Vasishtha. Please tell me exactly which deeds commit the sin of killing a brahmin, even if one does not kill a brahmin?'॥ 3॥ |
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