श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 26: ब्रह्महत्याके समान पापोंका निरूपण  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  13.26.12 
आश्रमे वा वने वापि ग्रामे वा यदि वा पुरे।
अग्निं समुत्सृजेन्मोहात्तं विद्याद् ब्रह्मघातिनम्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
जो आसक्तिवश आश्रम, वन, ग्राम या नगर में आग लगाता है, उसे भी ब्राह्मणों का हत्यारा समझना चाहिए।॥12॥
 
He who, out of attachment, sets fire to an ashram, forest, village or town should also be considered a killer of brahmins.'॥ 12॥
 
इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि ब्रह्मघ्नकथने चतुर्विंशोऽध्याय:॥ २४॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गतदानधर्मपर्वमें ब्रह्महत्यारोंका कथनविषयक चौबीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २४ ॥

 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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