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श्लोक 13.24.41  |
निशम्य च गुणोपेतं ब्राह्मणं साधुसम्मतम्।
दूरादानाय्य सत्कृत्य सर्वतश्चापि पूजयेत्॥ ४१॥ |
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अनुवाद |
यदि किसी पुण्यात्मा ब्राह्मण का कहीं दूर भी, भले ही दूर कहीं भी, उल्लेख हो तो उसे वहां से बुलाकर अपने घर लाना चाहिए तथा उसका हर प्रकार से पूजन और सम्मान करना चाहिए। |
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If a virtuous Brahmin, respected by good men, is heard of anywhere, even far away, he should be called from there to one's home, and should be worshipped and honoured in every possible way. |
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इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि बहुप्राश्निके द्वाविंशोऽध्याय:॥ २२॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दान-धर्मपर्वमें बहुत-से प्रश्नोंका निर्णयविषयक बाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २२॥
(दाक्षिणात्य अधिक पाठके ४६ श्लोक मिलाकर कुल ८७ श्लोक हैं, Second split of 2 chapters) |
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