श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 24: युधिष्ठिरके विविध धर्मयुक्त प्रश्नोंका उत्तर तथा श्राद्ध और दानके उत्तम पात्रोंका लक्षण  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  13.24.4 
भीष्म उवाच
श्रद्धापूतो नरस्तात दुर्दान्तोऽपि न संशय:।
पूतो भवति सर्वत्र किमुत त्वं महाद्युते॥ ४॥
 
 
अनुवाद
भीष्म बोले, "महाराज! यदि मनुष्य में संयम न भी हो, तो भी वह श्रद्धा से ही पवित्र हो जाता है - इसमें कोई संदेह नहीं है। हे महाबली राजन! श्रद्धा से युक्त मनुष्य सर्वत्र पवित्र होता है, फिर आप जैसे सदाचारी पुरुष की पवित्रता में संदेह क्यों है?"
 
Bhishma said, "Sir, even if a man does not have self-control, he becomes pure by faith alone - there is no doubt about this. O mighty king! A man full of faith is pure everywhere, then why is there any doubt about the purity of a virtuous person like you?"
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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