श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 24: युधिष्ठिरके विविध धर्मयुक्त प्रश्नोंका उत्तर तथा श्राद्ध और दानके उत्तम पात्रोंका लक्षण  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  13.24.29 
अधिकारे यदनृतं यच्च राजसु पैशुनम्।
गुरोश्चालीककरणं तुल्यं तद् ब्रह्महत्यया॥ २९॥
 
 
अनुवाद
न्याय की शक्ति पाकर भी झूठा निर्णय देना अथवा दरबार में झूठ बोलना, राजा के सामने किसी की चुगली करना तथा गुरु के साथ छल-कपट का व्यवहार करना - ये तीन पाप ब्राह्मण-हत्या के समान हैं ॥29॥
 
Giving a false judgment after having the power of justice or lying in the court, backbiting someone in front of the king and behaving deceitfully with the Guru - these three sins are equal to the murder of a brahmin. ॥ 29॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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