|
|
|
श्लोक 13.24.29  |
अधिकारे यदनृतं यच्च राजसु पैशुनम्।
गुरोश्चालीककरणं तुल्यं तद् ब्रह्महत्यया॥ २९॥ |
|
|
अनुवाद |
न्याय की शक्ति पाकर भी झूठा निर्णय देना अथवा दरबार में झूठ बोलना, राजा के सामने किसी की चुगली करना तथा गुरु के साथ छल-कपट का व्यवहार करना - ये तीन पाप ब्राह्मण-हत्या के समान हैं ॥29॥ |
|
Giving a false judgment after having the power of justice or lying in the court, backbiting someone in front of the king and behaving deceitfully with the Guru - these three sins are equal to the murder of a brahmin. ॥ 29॥ |
|
✨ ai-generated |
|
|