श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 21: अष्टावक्र और उत्तर दिशाका संवाद  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  13.21.26 
यथा परं शक्तिधृतेर्न व्युत्थास्ये कथंचन।
न रोचते हि व्युत्थानं सत्येनासादयाम्यहम्॥ २६॥
 
 
अनुवाद
मुझमें अपनी काम-वासना का दमन करने की शक्ति है और किसी भी प्रकार से ऋषि की कन्या प्राप्त करने का धैर्य है। इस शक्ति और धैर्य के कारण मैं किसी भी प्रकार विचलित नहीं होऊँगा। धर्म का उल्लंघन मुझे पसंद नहीं है। मैं सत्य के सहारे ही पत्नी प्राप्त करूँगा।॥26॥
 
I have the power to suppress my lust and I have the patience to get the daughter of a sage by any means. With this power and patience, I will not get distracted in any way. I do not like violating Dharma. I will get a wife only with the help of truth.॥26॥
 
इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि अष्टावक्रदिक्संवादे विंशोऽध्याय:॥ २०॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्वमें अष्टावक्र और उत्तरदिशाका संवादविषयक बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २०॥

 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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