श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 21: अष्टावक्र और उत्तर दिशाका संवाद  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  13.21.12 
अष्टावक्र उवाच
न भद्रे परदारेषु मनो मे सम्प्रसज्जति।
उत्तिष्ठ भद्रे भद्रं ते स्वयं वै विरमस्व च॥ १२॥
 
 
अनुवाद
अष्टावक्र बोले, "भैया! मेरा मन पराई स्त्रियों की ओर आकर्षित नहीं होता। तुम्हारा कल्याण हो, तुम यहाँ से उठ जाओ और इस पापकर्म से अपने को रोक लो।" ॥12॥
 
Ashtavakra said, "Brother! My mind is not attracted to other women. May you be blessed, get up from here and stop yourself from this sinful act." ॥12॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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