श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 20: अष्टावक्र मुनिका वदान्य ऋषिके कहनेसे उत्तर दिशाकी ओर प्रस्थान, मार्गमें कुबेरके द्वारा उनका स्वागत तथा स्त्रीरूपधारिणी उत्तरदिशाके साथ उनका संवाद  »  श्लोक d1-14
 
 
श्लोक  13.20.d1-14 
ऋषिस्तमाह देया मे सुता तुभ्यं हि तच्छृणु।
(अनन्यस्त्रीजन: प्राज्ञो ह्यप्रवासी प्रियंवद:।
सुरूप: सम्मतो वीर: शीलवान् भोगभुक्छवि:।
दारानुमतयज्ञश्च सुनक्षत्रामथोद्वहेत्।
स्वभर्त्रा स्वजनोपेत इह प्रेत्य च मोदते॥ )४॥
गच्छ तावद् दिशं पुण्यामुत्तरां द्रक्ष्यसे तत:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
वदान्य ऋषि ने अष्टावक्र के अनुरोध का इस प्रकार उत्तर दिया - 'विप्रवर! मैं अपनी पुत्री का विवाह ऐसे पुरुष से करना चाहता हूँ, जिसकी कोई दूसरी पत्नी न हो, जो परदेश में न रहता हो, जो विद्वान हो, मधुर वाणी बोलने वाला हो, प्रजा द्वारा सम्मानित हो, वीर हो, शीलवान हो, सुख भोगने में समर्थ हो, तेजस्वी हो और रूपवान हो। जो पुरुष अपनी पत्नी की आज्ञा से यज्ञ करता है और शुभ नक्षत्र में उत्पन्न कन्या से विवाह करता है, वह पुरुष अपनी पत्नी के साथ रहता है और पत्नी अपने पति के साथ रहकर इस लोक और परलोक दोनों में सुख भोगती है। मैं तुम्हें अपनी पुत्री अवश्य देता हूँ, परन्तु पहले एक बात सुनो, यहाँ से परम पवित्र उत्तर दिशा की ओर जाओ। वहाँ तुम उसे देखोगे।'॥14॥
 
Vadanya Rishi replied to Ashtavakra's request in this way - 'Vipravara! I want to marry my daughter to a man who does not have any other wife, who does not live in a foreign land, who is learned, who speaks sweet words, who is respected by the people, brave, well behaved, capable of enjoying pleasures, radiant and handsome. A man who performs a yajna with the permission of his wife and marries a girl born under a favourable nakshatra, that man lives with his wife and the wife lives with her husband and enjoys happiness in both this world and the next. I will certainly give you my daughter, but first listen to one thing, go from here towards the most sacred north direction. You will see her there.'॥14॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.