श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 20: अष्टावक्र मुनिका वदान्य ऋषिके कहनेसे उत्तर दिशाकी ओर प्रस्थान, मार्गमें कुबेरके द्वारा उनका स्वागत तथा स्त्रीरूपधारिणी उत्तरदिशाके साथ उनका संवाद  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  13.20.32 
सोऽपश्यत् काञ्चनद्वारं दीप्यमानमिव श्रिया।
मन्दाकिनीं च नलिनीं धनदस्य महात्मन:॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
कुछ दूर जाने पर उन्हें कुबेर की अलकापुरी का स्वर्ण द्वार दिखाई दिया, जो दिव्य प्रकाश से जगमगा रहा था। वहाँ उन्होंने महात्मा कुबेर का कमल पुष्पों से सुशोभित एक कुआँ देखा, जो गंगाजी के जल से परिपूर्ण होने के कारण मंदाकिनी नाम से प्रसिद्ध था।
 
After going some distance, he saw the golden gate of Kuber's Alakapuri, which was glowing with divine light. There he saw a well decorated with lotus flowers of Mahatma Kuber, which was famous by the name of Mandakini because it was filled with the water of Gangaji.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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