श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 20: अष्टावक्र मुनिका वदान्य ऋषिके कहनेसे उत्तर दिशाकी ओर प्रस्थान, मार्गमें कुबेरके द्वारा उनका स्वागत तथा स्त्रीरूपधारिणी उत्तरदिशाके साथ उनका संवाद  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  13.20.3 
संदेह: सुमहानेष विरुद्ध इति मे मति:।
इह य: सहधर्मो वै प्रेत्यायं विहित: क्व नु॥ ३॥
 
 
अनुवाद
मेरे मन में यह बड़ा संदेह उत्पन्न हो गया है। मुझे लगता है कि यह कथन सहधर्म के विरुद्ध है। मृत्यु के बाद यहाँ सहधर्म कहाँ रह जाता है?
 
This great doubt has arisen in my mind. I think that this statement is against the co-religion. Where does the co-religion here remain after death?
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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