श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 20: अष्टावक्र मुनिका वदान्य ऋषिके कहनेसे उत्तर दिशाकी ओर प्रस्थान, मार्गमें कुबेरके द्वारा उनका स्वागत तथा स्त्रीरूपधारिणी उत्तरदिशाके साथ उनका संवाद  »  श्लोक 21-22
 
 
श्लोक  13.20.21-22 
पूर्वे तत्र महापार्श्वे देवस्योत्तरतस्तथा।
ऋतव: कालरात्रिश्च ये दिव्या ये च मानुषा:॥ २१॥
देवं चोपासते सर्वे रूपिण: किल तत्र ह।
तदतिक्रम्य भवनं त्वया यातव्यमेव हि॥ २२॥
 
 
अनुवाद
महादेवजी के पूर्व और उत्तर में महापार्श्व नामक पर्वत है, जहाँ ऋतुएँ, रात्रि, दैवी और मनुष्य सभी मूर्ति रूप धारण करके महादेवजी की पूजा करते हैं। उस स्थान को पार करके तुम आगे बढ़ते रहो॥21-22॥
 
To the east and north of Mahadevji, there is a mountain called Mahaparshva, where the seasons, the night and the divine and human beings all take the form of idols and worship Mahadevji. Crossing that place, you keep moving ahead. 21-22॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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