श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 92
 
 
श्लोक  13.2.92 
अतिथि: पूजितो यद्धि ध्यायते मनसा शुभम्।
न तत् क्रतुशतेनापि तुल्यमाहुर्मनीषिण:॥ ९२॥
 
 
अनुवाद
यदि अतिथि का सत्कार करके वह मन ही मन गृहस्थ के हित की बात सोचे, तो उससे प्राप्त होने वाला फल सौ यज्ञों के बराबर भी नहीं है, अर्थात् वह सौ यज्ञों से भी श्रेष्ठ है। ऐसा बुद्धिमान पुरुषों का कथन है॥ 92॥
 
If a guest, after being respected, thinks of the welfare of the householder in his mind, then the result obtained from it cannot be compared to even a hundred sacrifices, i.e. it is better than a hundred sacrifices. This is the statement of wise men.॥ 92॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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