श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 88
 
 
श्लोक  13.2.88 
स्नेहो रागश्च तन्द्री च मोहो द्रोहश्च केवल:।
तव शुश्रूषया राजन् राजपुत्र्या विनिर्जिता:॥ ८८॥
 
 
अनुवाद
हे राजन! राजकुमारी ओघवती ने भी आपकी सेवा के बल से ममता, रजोगुण, आलस्य, मोह और कपट आदि दुर्गुणों पर विजय प्राप्त कर ली है। ॥88॥
 
O King! Princess Oghavati has also conquered the vices of affection, passion, laziness, infatuation and treachery by the power of your service.' ॥ 88॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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