श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 87
 
 
श्लोक  13.2.87 
पञ्चभूतान्यतिक्रान्त: स्ववीर्याच्च मनोजव:।
गृहस्थधर्मेणानेन कामक्रोधौ च ते जितौ॥ ८७॥
 
 
अनुवाद
अपने पराक्रम से पंचभूतों पर विजय पाकर आप मन के समान वेगवान हो गए हैं। इस गृहस्थ जीवन के आचरण से ही आपने काम और क्रोध पर विजय प्राप्त की है। 87॥
 
By overcoming the five ghosts with your might, you have become as fast as the mind. It is only by the conduct of this family life that you have gained victory over lust and anger. 87॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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