श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 85
 
 
श्लोक  13.2.85 
अनया सह लोकांश्च गन्तासि तपसार्जितान्।
यत्र नावृत्तिमभ्येति शाश्वतांस्तान् सनातनान्॥ ८५॥
 
 
अनुवाद
इसके साथ ही तुम अपनी तपस्या से प्राप्त उन सनातन लोकों में जाओगे जहाँ से इस संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं रहेगी॥ 85॥
 
‘Along with this you will go to those eternal worlds attained by your austerities from where there is no need to return to this world.॥ 85॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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