श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 83-84
 
 
श्लोक  13.2.83-84 
एषा हि तपसा स्वेन संयुक्ता ब्रह्मवादिनी।
पावनार्थं च लोकस्य सरिच्छ्रेष्ठा भविष्यति॥ ८३॥
अर्धेनौघवती नाम त्वामर्धेनानुयास्यति।
शरीरेण महाभागा योगो ह्यस्या वशे स्थित:॥ ८४॥
 
 
अनुवाद
यह ब्रह्मवादिनी स्त्री अपने तप के बल से युक्त होकर अपने आधे शरीर से संसार को पवित्र करने के लिए ओघवती नामक महानदी होगी और अपने आधे शरीर से यह परम सौभाग्यवती सती आपकी सेवा में रहेगी। योग सदैव इसके वश में रहेगा। 83-84॥
 
This Brahmavadini woman, equipped with the power of her penance, will be the great river named Oghavati with half of her body to purify the world and with the other half of her body, this very fortunate Sati will be in your service. Yoga will always remain under its control. 83-84॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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