श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 80
 
 
श्लोक  13.2.80 
विजितश्च त्वया मृत्युर्योऽयं त्वामनुगच्छति।
रन्ध्रान्वेषी तव सदा त्वया धृत्या वशी कृत:॥ ८०॥
 
 
अनुवाद
तुमने इस मृत्यु को जीत लिया है, जो सदैव तुम्हारे पीछे पड़ी रहती थी। तुमने अपने धैर्य से मृत्यु को वश में कर लिया है। ॥80॥
 
‘You have conquered this death, which was always after you trying to find your loophole. You have subdued death with your patience. ॥ 80॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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