श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 78
 
 
श्लोक  13.2.78 
स्वरेण विप्र: शैक्षेण त्रील्‍ँलोकाननुनादयन्।
उवाच चैनं धर्मज्ञं पूर्वमामन्त्र्य नामत:॥ ७८॥
 
 
अनुवाद
उस ब्राह्मण ने उपदेश के अनुकूल उत्तम वाणी से तीनों लोकों में प्रतिध्वनित होकर सबसे पहले विद्वान सुदर्शन को संबोधित करके उनसे इस प्रकार कहा - ॥78॥
 
That Brahmin, resonating in all the three worlds with a sublime voice appropriate to the teachings, first addressed the learned Sudarshan and said to him thus – ॥ 78॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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