श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 64
 
 
श्लोक  13.2.64 
उटजस्थस्तु तं विप्र: प्रत्युवाच सुदर्शनम्।
अतिथिं विद्धि सम्प्राप्तं ब्राह्मणं पावके च माम्॥ ६४॥
 
 
अनुवाद
यह सुनकर आश्रम के अन्दर बैठे हुए ब्राह्मण ने सुदर्शन को उत्तर दिया - 'अग्निकुमार! आपको यह जान लेना चाहिए कि मैं एक ब्राह्मण हूँ और आपके घर अतिथि बनकर आया हूँ।'
 
Hearing this, the Brahmin sitting inside the ashram replied to Sudarshan - 'Agnikumar! You should know that I am a Brahmin and have come to your house as a guest. 64.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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