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श्लोक 13.2.64  |
उटजस्थस्तु तं विप्र: प्रत्युवाच सुदर्शनम्।
अतिथिं विद्धि सम्प्राप्तं ब्राह्मणं पावके च माम्॥ ६४॥ |
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अनुवाद |
यह सुनकर आश्रम के अन्दर बैठे हुए ब्राह्मण ने सुदर्शन को उत्तर दिया - 'अग्निकुमार! आपको यह जान लेना चाहिए कि मैं एक ब्राह्मण हूँ और आपके घर अतिथि बनकर आया हूँ।' |
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Hearing this, the Brahmin sitting inside the ashram replied to Sudarshan - 'Agnikumar! You should know that I am a Brahmin and have come to your house as a guest. 64. |
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