श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  13.2.54 
यदि प्रमाणं धर्मस्ते गृहस्थाश्रमसम्मत:।
प्रदानेनात्मनो राज्ञि कर्तुमर्हसि मे प्रियम्॥ ५४॥
 
 
अनुवाद
"रानी! यदि आप गृहस्थ धर्म स्वीकार करती हैं, तो आप मुझे अपना शरीर देकर मेरा प्रिय कार्य कीजिए।" ॥54॥
 
"Queen! If you accept the Dharma of a householder, then you should give me your body and do my favourite work." ॥ 54॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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