श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  13.2.48 
जिगीषमाणस्तु गृहे तदा मृत्यु: सुदर्शनम्।
पृष्ठतोऽन्वगमद् राजन् रन्ध्रान्वेषी तदा सदा॥ ४८॥
 
 
अनुवाद
राजा ! उन दिनों गृहस्थ धर्म में लीन सुदर्शन को जीतने की इच्छा से मृत्यु सदैव उसके पीछे-पीछे रहती थी और उसकी दुर्बलता का पता लगाने का प्रयत्न करती रहती थी ॥48॥
 
King! In those days, Death, with the desire to conquer Sudarshan, who was confined to the duties of a householder, was always following him, trying to find his weakness. ॥ 48॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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