श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  13.2.47 
तमब्रवीदोघवती तथा मूर्ध्नि कृताञ्जलि:।
न मे त्वद्वचनात् किंचिन्न कर्तव्यं कथंचन॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
यह सुनकर ओघवती ने हाथ जोड़कर सिर पर रख लिए और बोली, 'ऐसा कोई कार्य नहीं है, जिसे मैं किसी भी कारण से आपकी अनुमति लेकर न कर सकूं।'
 
Hearing this, Oghavati folded her hands and placed them on her head and said, 'There is no task that I cannot perform with your permission for any reason.'
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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