श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  13.2.46 
निष्क्रान्ते मयि कल्याणि तथा संनिहितेऽनघे।
नातिथिस्तेऽवमन्तव्य: प्रमाणं यद्यहं तव॥ ४६॥
 
 
अनुवाद
"कल्याणी! निष्पाप! यदि तुम मुझे आदर्श मानती हो तो चाहे मैं घर पर रहूँ या घर से दूर चला जाऊँ, तुम्हें किसी भी परिस्थिति में अतिथि का अनादर नहीं करना चाहिए।" ॥46॥
 
"Kalyani! Sinless one! If you consider me ideal then whether I stay at home or go far away from home, you should not disrespect guests under any circumstances." ॥ 46॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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