श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  13.2.25 
न ह्यल्पं दुष्कृतं नोऽस्ति येनाग्निर्नाशमागत:।
भवतां चाथवा मह्यं तत्त्वेनैतद् विमृश्यताम्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
हमने कोई छोटा-मोटा अपराध नहीं किया है, जिसके कारण अग्निदेव अदृश्य हो गए हैं। वह अपराध तुम्हारा है या मेरा - इस पर अच्छी तरह विचार करो॥ 25॥
 
‘We have committed no small crime due to which Agnidev has become invisible. Is that crime yours or mine - think about it clearly.'॥ 25॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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