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श्लोक 13.2.23  |
ततोऽस्य वितते यज्ञे नष्टोऽभूद्धव्यवाहन:।
तत: सुदु:खितो राजा वाक्यमाह द्विजांस्तदा॥ २३॥ |
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अनुवाद |
तब अग्निदेव क्रोधित होकर राजा द्वारा आरम्भ किए गए यज्ञ से अन्तर्धान हो गए। इससे राजा को बड़ा दुःख हुआ और उन्होंने ब्राह्मणों से कहा-॥23॥ |
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Then Agnidev became angry and disappeared from the yagya started by the king. This made the king very sad and he said to the Brahmins -॥ 23॥ |
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