श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 2: प्रजापति मनुके वंशका वर्णन, अग्निपुत्र सुदर्शनका अतिथिसत्काररूपी धर्मके पालनसे मृत्युपर विजय पाना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  13.2.23 
ततोऽस्य वितते यज्ञे नष्टोऽभूद्धव्यवाहन:।
तत: सुदु:खितो राजा वाक्यमाह द्विजांस्तदा॥ २३॥
 
 
अनुवाद
तब अग्निदेव क्रोधित होकर राजा द्वारा आरम्भ किए गए यज्ञ से अन्तर्धान हो गए। इससे राजा को बड़ा दुःख हुआ और उन्होंने ब्राह्मणों से कहा-॥23॥
 
Then Agnidev became angry and disappeared from the yagya started by the king. This made the king very sad and he said to the Brahmins -॥ 23॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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