श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 83
 
 
श्लोक  13.19.83 
यावन्त्यस्य शरीरेषु रोमकूपाणि भारत।
तावन्त्यब्दसहस्राणि स्वर्गे वसति मानव:॥ ८३॥
 
 
अनुवाद
भरतनन्दन! जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह मनुष्य शरीर में जितने रोम होते हैं, उतने ही सहस्त्र वर्षों तक स्वर्ग में निवास करता है ॥83॥
 
Bharatnandan! The person who recites this stotra resides in heaven for the same number of thousands of years as there are pores in the human body. 83॥
 
इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि मेघवाहनपर्वाख्याने अष्टादशोऽध्याय:॥ १८॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्वमें मेघवाहनपर्वकी कथा विषयक अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १८॥

 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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