|
|
|
श्लोक 13.19.83  |
यावन्त्यस्य शरीरेषु रोमकूपाणि भारत।
तावन्त्यब्दसहस्राणि स्वर्गे वसति मानव:॥ ८३॥ |
|
|
अनुवाद |
भरतनन्दन! जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह मनुष्य शरीर में जितने रोम होते हैं, उतने ही सहस्त्र वर्षों तक स्वर्ग में निवास करता है ॥83॥ |
|
Bharatnandan! The person who recites this stotra resides in heaven for the same number of thousands of years as there are pores in the human body. 83॥ |
|
इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि मेघवाहनपर्वाख्याने अष्टादशोऽध्याय:॥ १८॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्वमें मेघवाहनपर्वकी कथा विषयक अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १८॥
|
|
|
✨ ai-generated |
|
|