श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 81
 
 
श्लोक  13.19.81 
वेदान् कृत्स्नान् ब्राह्मण: प्राप्नुयात् तु
जयेन्नृप: पार्थ महीं च कृत्स्नाम्।
वैश्यो लाभं प्राप्नुयान्नैपुणं च
शूद्रो गतिं प्रेत्य तथा सुखं च॥ ८१॥
 
 
अनुवाद
कुन्तीनन्दन! इसका पाठ करने से ब्राह्मण सम्पूर्ण वेदों के स्वाध्याय का फल पाता है। क्षत्रिय सम्पूर्ण पृथ्वी पर विजय प्राप्त करता है। वैश्य व्यापार में कुशल और महान् लाभ प्राप्त करता है, जबकि शूद्र इस लोक में सुख और परलोक में मोक्ष प्राप्त करता है। 81॥
 
Kuntinandan! By reciting this Brahmin gets the result of self-study of the entire Vedas. The Kshatriya conquers the entire earth. A Vaishya enjoys business acumen and great profits, while a Shudra enjoys happiness in this world and salvation in the next world. 81॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.