श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 80
 
 
श्लोक  13.19.80 
इमं स्तवं संनियतेन्द्रियश्च
भूत्वा शुचिर्य: पुरुष: पठेत।
अभग्नयोगो नियतो मासमेकं
सम्प्राप्नुयादश्वमेधे फलं यत्॥ ८०॥
 
 
अनुवाद
जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को वश में करके तथा शुद्ध होकर इस स्तोत्र का पाठ करता है और एक महीने तक नियमित रूप से ऐसा करता रहता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
 
He who, having controlled his senses and being pure, recites this hymn and continues to do so regularly for a month will obtain the result of performing the Ashwamedha Yagna.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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