श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 79
 
 
श्लोक  13.19.79 
विचिन्वन्तस्तपसा तत्स्थवीय:
किंचित् तत्त्वं प्राणहेतोर्नतोऽस्मि।
ददातु देव: स वरानिहेष्टा-
नभिष्टुतो न: प्रभुरव्यय: सदा॥ ७९॥
 
 
अनुवाद
मैं उन सदा स्थिर, अवर्णनीय, अत्यन्त सूक्ष्म तत्त्व सदाशिव को प्रणाम करता हूँ, जिन्हें ऋषि-मुनि अपने जीवन की रक्षा के लिए तपस्या द्वारा खोजते हैं। वे अविनाशी प्रभु, जिनकी मैं सदैव स्तुति करता आया हूँ, मुझे यहाँ अभीष्ट वर प्रदान करें।
 
I bow to Sada Shiva, the ever-stable, indescribable, most subtle element, whom sages and saints search for through penance, for the protection of my life. May that indestructible Lord, who has always been praised by me, grant me the desired boon here.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.