श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान् शिवजीकी महिमाका वर्णन » श्लोक 71-77 |
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| | श्लोक 13.19.71-77  | विष्णुरुवाच
आदित्यचन्द्रावनिलानलौ च
द्यौर्भूमिरापो वसवोऽथ विश्वे।
धातार्यमा शुक्रबृहस्पती च
रुद्रा: ससाध्या वरुणोऽथगोप:॥ ७१॥
ब्रह्मा शक्रो मारुतो ब्रह्म सत्यं
वेदा यज्ञा दक्षिणा वेदवाहा:।
सोमो यष्टा यच्च हव्यं हविश्च
रक्षा दीक्षा संयमा ये च केचित्॥ ७२॥
स्वाहा वौषट् ब्राह्मणा: सौरभेयी
धर्मं चाग्रॺं कालचक्रं बलं च।
यशो दमो बुद्धिमतां स्थितिश्च
शुभाशुभं ये मुनयश्च सप्त॥ ७३॥
अग्रॺा बुद्धिर्मनसा दर्शने च
स्पर्शश्चाग्रॺ: कर्मणां या च सिद्धि:।
गणा देवानामूष्मपा: सोमपाश्च
लेखा: सुयामास्तुषिता ब्रह्मकाया:॥ ७४॥
आभासुरा गन्धपा धूमपाश्च
वाचा विरुद्धाश्च मनोविरुद्धा:।
शुद्धाश्च निर्माणरताश्च देवा:
स्पर्शाशना दर्शपा आज्यपाश्च॥ ७५॥
चिन्त्यद्योता ये च देवेषु मुख्या
ये चाप्यन्ये देवताश्चाजमीढ।
सुपर्णगन्धर्वपिशाचदानवा
यक्षास्तथा चारणपन्नगाश्च॥ ७६॥
स्थूलं सूक्ष्मं मृदु चाप्यसूक्ष्मं
दु:खं सुखं दु:खमनन्तरं च।
सांख्यं योगं तत्पराणां परं च
शर्वाज्जातं विद्धि यत् कीर्तितं मे॥ ७७॥ | | | अनुवाद | श्रीकृष्ण बोले- अजमीढ़ वंश के धर्मराज! सूर्य, चन्द्रमा, वायु, अग्नि, स्वर्ग, भूमि, जल, वसु, विश्वेदेव, धाता, अर्यमा, शुक्र, बृहस्पति, रुद्रगण, साध्यगण, राजा वरुण, ब्रह्मा, इन्द्र, वायुदेव, ओंकार, सत्य, वेद, यज्ञ, दक्षिणा, वेदपाठी ब्राह्मण, सोमरस, यजमान, हवनीय हविष्य, रक्षा, दीक्षा, सभी प्रकार के संयम, स्वाहा, वौषट, ब्राह्मण, गौ, श्रेष्ठ कौन हैं? धर्म, कालचक्र, शक्ति, यश, बल, बुद्धिमानों की स्थिति, शुभ एवं मंगलमय कर्म, सप्त ऋषि, उत्तम बुद्धि, मन, दर्शन, उत्तम स्पर्श, कर्मसिद्धि, उष्मप, सोमप, लेखा, यम और तुषित आदि देवता, ब्राह्मण शरीर, तेजोमय गन्धप, धूमप ऋषि, वाणी और मन के विपरीत विचार, शुद्ध भावनाएँ, निर्माण कार्य में तत्पर देवता, स्पर्श मात्र से भोजन करने वाले, दृष्टि मात्र से रस पीने वाले। जो करते हैं, घी पीते हैं, जिनके संकल्पमात्र से अभीष्ट वस्तु आँखों के सामने प्रकट होने लगती है, ऐसे जो देवताओं में प्रधान हैं, जो अन्य देवता हैं, जो सुपर्ण, गन्धर्व, पिशाच, दानव, यक्ष, चारण और नाग हैं, जो स्थूल, सूक्ष्म, कोमल, असूक्ष्म हैं, सुख, इस लोक का दुःख, परलोक का दुःख, सांख्य, योग और समस्त पुरुषार्थों में उत्तम पुरुषार्थ, परम मोक्ष कहा गया है; इन सबको महादेवजी से ही उत्पन्न हुआ समझो ॥71-77॥ | | Shri Krishna said- Dharamraj of Ajamidh dynasty! Who is the Sun, Moon, Air, Fire, Heaven, Land, Water, Vasu, Vishwadev, Dhata, Aryama, Venus, Jupiter, Rudragana, Sadhyagan, King Varun, Brahma, Indra, Vayudev, Omkar, Satya, Veda, Yagya, Dakshina, Vedapathi Brahmin, Somaras, Yajaman, Havaniya Havishya, Raksha, Diksha, all types of restraints, Swaha, Vaushat, Brahmins, Cow, Shrestha. Religion, cycle of time, power, fame, strength, condition of wise people, auspicious and auspicious deeds, seven sages, best intelligence, mind, philosophy, best touch, accomplishment of deeds, Ushmap, Somap, Lekha, Yam and Tushit etc. gods, Brahmin body, luminous Gandhap, Dhoomap Rishi, thoughts contrary to speech and mind, pure feelings, Gods who are ready for construction work, those who eat food with mere touch, drink juice with mere sight. Those who do, are those who drink ghee, By whose mere resolution, the desired object starts appearing before the eyes, such who are the main ones among the gods, who are other gods, who are Suparna, Gandharva, Pishach, Demon, Yaksha, Charan and Naga, who are gross, subtle, soft, non-subtle, happiness, the sorrow of this world, the sorrow of the next world, Sankhya, Yoga and the best effort among all the efforts, the supreme salvation is said to be; Consider all these to have originated from Mahadevji only. 71-77॥ |
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