श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 69-70
 
 
श्लोक  13.19.69-70 
एवमेव महादेवं भक्ता ये मानवा भुवि॥ ६९॥
न ते संसारवशगा इति मे निश्चिता मति:।
तत: कृष्णोऽब्रवीद् वाक्यं धर्मपुत्रं युधिष्ठिरम्॥ ७०॥
 
 
अनुवाद
इसी प्रकार इस पृथ्वी पर जो मनुष्य महादेवजी के भक्त हैं, वे संसार के अधीन नहीं हैं - यह मेरा निश्चित मत है।’ तत्पश्चात् स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मपुत्र युधिष्ठिर से कहा - 69-70॥
 
Similarly, the humans who are devotees of Mahadevji on this earth are not subject to the world - this is my definite opinion.' Thereafter, Lord Shri Krishna himself said to Dharma's son Yudhishthir - 69-70॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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