श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 67-68h
 
 
श्लोक  13.19.67-68h 
सर्वलक्षणहीनोऽपि युक्तो वा सर्वपातकै:॥ ६७॥
सर्वं तुदति तत्पापं भावयञ्छिवमात्मना।
 
 
अनुवाद
जो मनुष्य समस्त गुणों से रहित है अथवा समस्त पापों से युक्त है, वह भी यदि पूरे मन से भगवान शिव का ध्यान करता है, तो उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
 
Even a man who is devoid of all the qualities or is filled with all the sins, if he meditates on Lord Shiva with all his heart, then he destroys all his sins. 67 1/2
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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