श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 66-67h
 
 
श्लोक  13.19.66-67h 
भित्त्वा भित्त्वा च कूलानि हुत्वा सर्वमिदं जगत‍्॥ ६६॥
यजेद् देवं विरूपाक्षं न स पापेन लिप्यते।
 
 
अनुवाद
जो मनुष्य बार-बार तालाब खोदकर उसके किनारों को नष्ट कर देता है और जो सम्पूर्ण जगत को प्रज्वलित अग्नि में झोंक देता है, वह भी यदि महादेवजी का पूजन करता है, तो वह पाप से कलंकित नहीं होता।
 
Even a man who destroys the banks of a pond by digging it repeatedly and who throws the whole world into a blazing fire, if he worships Mahadevji, then he is not tainted by sin.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.