श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 65-66h
 
 
श्लोक  13.19.65-66h 
मनसापि शिवं तात ये प्रपद्यन्ति मानवा:॥ ६५॥
विधूय सर्वपापानि देवै: सह वसन्ति ते।
 
 
अनुवाद
पिताश्री! जो मनुष्य मन से भी भगवान शिव की शरण में जाते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वे देवताओं के साथ निवास करते हैं।
 
Father! Those men who surrender to Lord Shiva even in their minds, destroy all their sins and reside with the gods.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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