श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 64-65h
 
 
श्लोक  13.19.64-65h 
ब्रह्मत्वं केशवत्वं वा शक्रत्वं वा सुरै: सह॥ ६४॥
त्रैलोक्यस्याधिपत्यं वा तुष्टो रुद्र: प्रयच्छति।
 
 
अनुवाद
यदि भगवान रुद्र संतुष्ट हो जाएँ तो वे देवताओं सहित ब्रह्मपद, विष्णुपद, देवेन्द्रपद का अथवा तीनों लोकों का आधिपत्य प्रदान कर सकते हैं। 64 1/2॥
 
If Lord Rudra is satisfied then he can grant the lordship of Brahmapada, Vishnupada, Devendrapada along with the gods or all the three worlds. 64 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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