श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 63-64h
 
 
श्लोक  13.19.63-64h 
ईश्वरं सम्प्रपद्यन्ते द्विजा भावितभावना:।
सर्वथा वर्तमानोऽपि यो भक्त: परमेश्वरे॥ ६३॥
सदृशोऽरण्यवासीनां मुनीनां भावितात्मनाम्।
 
 
अनुवाद
केवल शुद्ध हृदय वाले ब्राह्मण ही महादेवजी की शरण लेते हैं। भगवान शिव का भक्त सभी प्रकार से आचरण करते हुए भी शुद्ध हृदय वाले वनवासी ऋषियों के समान होता है।'
 
‘Only those Brahmins who have a pure heart take refuge in Mahadevji. A devotee of Lord Shiva, even while behaving in all possible ways, is like the forest dwelling sages who have a pure heart. 63 1/2
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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