श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 61-62
 
 
श्लोक  13.19.61-62 
वासुदेव उवाच
उपमन्युर्मयि प्राह तपन्निव दिवाकर:॥ ६१॥
अशुभै: पापकर्माणो ये नरा: कलुषीकृता:।
ईशानं न प्रपद्यन्ते तमोराजसवृत्तय:॥ ६२॥
 
 
अनुवाद
भगवान् श्रीकृष्ण बोले - राजन ! सूर्य के समान तेजस्वी उपमन्यु ने मेरे समीप ही कहा था कि 'जो पापी मनुष्य अपने अशुभ आचरण से कलंकित हो गए हैं, वे तमोगुणी या रजोगुणी स्वभाव वाले लोग भगवान् शिव की शरण में नहीं जाते ॥61-62॥
 
Lord Shri Krishna said – King! Upamanyu, glowing like the sun, had said near me that 'Those sinful people who have been tainted by their inauspicious conduct, those people of Tamoguni or Rajoguni nature do not take refuge in Lord Shiva. 61-62॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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