श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 6-7
 
 
श्लोक  13.19.6-7 
मया गोकर्णमासाद्य तपस्तप्त्वा शतं समा:।
अयोनिजानां दान्तानां धर्मज्ञानां सुवर्चसाम्॥ ६॥
अजराणामदु:खानां शतवर्षसहस्रिणाम्।
लब्धं पुत्रशतं शर्वात् पुरा पाण्डुनृपात्मज॥ ७॥
 
 
अनुवाद
पाण्डुनन्दन! पूर्वकाल में मैंने गोकर्णतीर्थ में जाकर सौ वर्षों तक भगवान शंकर की तपस्या की और उन्हें प्रसन्न किया। इससे भगवान शंकर से मुझे सौ पुत्र प्राप्त हुए, जो अजेय, बुद्धिमान, धर्मात्मा, अत्यंत तेजस्वी, आयुहीन, शोकरहित और एक लाख वर्ष की आयु वाले थे।
 
Pandunandan! In earlier times, I went to Gokarnatirtha and did penance for a hundred years and satisfied Lord Shankar. From this, I received a hundred sons from Lord Shankar, who were ageless, intelligent, religious, extremely bright, ageless, sorrowless and with a lifespan of one lakh years. 6-7॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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