श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 19: शिवसहस्रनामके पाठकी महिमा तथा ऋषियोंका भगवान‍् शंकरकी कृपासे अभीष्ट सिद्धि होनेके विषयमें अपना-अपना अनुभव सुनाना और श्रीकृष्णके द्वारा भगवान‍् शिवजीकी महिमाका वर्णन  »  श्लोक 59-61h
 
 
श्लोक  13.19.59-61h 
वैशम्पायन उवाच
एतान्यत्यद्भुतान्येव कर्माण्यथ महात्मन:॥ ५९॥
प्रोक्तानि मुनिभि: श्रुत्वा विस्मयामास पाण्डव:।
तत: कृष्णोऽब्रवीद् वाक्यं पुनर्मतिमतां वर:॥ ६०॥
युधिष्ठिरं धर्मनिधिं पुरुहूतमिवेश्वर:।
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! ऋषियों द्वारा कहे गए महादेवजी के अद्भुत चरित्र को सुनकर पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर को बड़ा आश्चर्य हुआ। तब बुद्धिमानों में श्रेष्ठ श्रीकृष्ण ने धर्मनिधि युधिष्ठिर से उसी प्रकार कुछ कहा, जैसे श्री विष्णु देवराज इन्द्र से कुछ कहते हैं। 59-60 1/2॥
 
Vaishampayanji says – Janamejaya! Pandunandan Yudhishthir was greatly astonished to hear the wonderful character of Mahadevji as told by the sages. Then Shri Krishna, the best among the wise, said something to Dharmanidhi Yudhishthira in the same way as Shri Vishnu says something to Devraj Indra. 59-60 1/2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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